Kerala का सबसे बड़ा Temple Festival — Thrissur Pooram

--

Thrissur Pooram Kerala के त्रिशूर जिले की संस्कृति और परंपरा का एक उत्सव है, जो वडक्कुमनाथन मंदिर में आयोजित किया जाता है। यह उत्सव वडक्कुनाथन मंदिर पर केंद्रित है जहाँ भगवान शिव को श्रद्धा अर्पित करने के लिये जुलूस भेजा जाता है।

Thrissur Pooram Kerala के त्रिशूर जिले की संस्कृति और परंपरा का एक उत्सव है, जो वडक्कुमनाथन मंदिर में आयोजित किया जाता है। यह उत्सव वडक्कुनाथन मंदिर पर केंद्रित है जहाँ भगवान शिव को श्रद्धा अर्पित करने के लिये जुलूस भेजा जाता है। kerala thrissur pooram, वडक्कुमनाथन मंदिर, The History And Significance of Thrissur Pooram Festival(त्रिशूर पूरम), त्रिशूर पूरम THRISSUR POORAM 2024- India’s Spectacle of Tradition, The Traditional Carnival of Kerala
Kerala का सबसे बड़ा Temple Festival — Thrissur Pooram 2024

केरल वो राज्य है जो भारत के दक्षिणी भाग में स्थित है। केरल मनोरम सुंदरता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की भूमि है। यह हरा-भरा राज्य अपने शांत बैकवाटर, प्राचीन समुद्र तटों और जीवंत हिल स्टेशनों के लिए प्रसिद्ध है। केरल की संस्कृति वहां के भोजन, पहनावे, कला और नृत्य हर वस्तु तथा व्यक्ति से प्रदर्शित होती है।

त्रिशूर पूरम THRISSUR POORAM 2024- India’s Spectacle of Tradition

त्रिशूर पूरम केरल के त्रिशूर जिले की संस्कृति और परंपरा का एक उत्सव है, जो वडक्कुमनाथन मंदिर में आयोजित किया जाता है। पूरम केरल के मंदिरों में हर साल आयोजित होने वाले वार्षिक उत्सवों को संबोधित करने के लिए एक सामान्य शब्द है. प्रतिवर्ष उस दिन आयोजित किया जाता है जब चंद्रमा मलयालम कैलेंडर के मेडम महीने की समय अवधि मे पूरम नक्षत्र में प्रवेश करता है। त्रिशूर पूरम एशिया के सबसे बड़े उत्सवों मे से एक है, जिसमें तेज ताल संगीत, जीवंत छतरियों की कतारें और नेट्टीपट्टम अर्थात (सिर का आभूषण) से सजे हाथियों का भव्य उत्सव होता है।

हाथी और केरल अविभाज्य रूप से संबंधित हैं। केरल एकमात्र स्थान होना चाहिए जहां एक हाथी, गुरुवयूर केसवन की याद में एक मूर्ति बनाई गई है, जिसने कई दशकों तक गुरुवयूर के इष्टदेव की सेवा की थी। इसीलिए गुरुवयूर में हर साल एक हाथी दौड़ आयोजित की जाती है। एक रोचक तथ्य यह भी है की केरलवासी हाथियों को घरेलू जानवर मानते हैं और उन्हें मानव नाम देते हैं।

The History And Significance of Thrissur Pooram Festival(त्रिशूर पूरम)

त्रिशूर पूरम, राम वर्मा कुन्हजिप्पिला थंपुरन, या राम वर्मा IX ने शुरू किया था। जो अपनी जनता के बीच महाराजा सकथान थंपुरन के नाम से प्रसिद्ध थे। वह कोचीन के 1790–1805 की समय अवधि मे महाराजा थे। केरल में त्रिशूर पूरम से पूर्व सबसे बड़ा मंदिर उत्सव आराट्टुपुझा में आयोजित होता था। वह एक दिवसीय उत्सव हुआ करता था, जिसे अराट्टुपुझा पूरम के नाम से जाना जाता था। उस दौरान त्रिशूर शहर और उसके आसपास के मंदिर नियमित प्रतिभागी हुआ करते थे। वर्ष 1798 में उस शहर में लगातार भारी बारिश हुई और इस कारण त्रिशूर के मंदिरों को अराट्टुपुझा पूरम जाने में देर हो गई थी। उत्सव में प्रवेश से वंचित रह जाने के कारण मंदिर के अधिकारियों ने इस मुद्दे को महाराज सकथान थंपुरन के समक्ष प्रस्तुत किया। तब महाराज सकथान थंपुरन ने अप्रैल-मई में उसी दिन, त्रिशूर पूरम अपना स्वयं का उत्सव शुरू करने का निर्णय लिया। यह उत्सव तब से केरल में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र बन गया। जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों पर्यटकों को आकर्षित करता है। आज, यह दुनिया के सबसे प्रसिद्ध मंदिर उत्सवों में से एक है।

त्रिशूर पूरम का आरंभ — Thrissur Pooram Festival

पूरम का उत्सव कोडियेट्टम, या झंडा फहराने के साथ शुरू होता है। झंडे को अनुष्ठानिक ढंग से बढ़ई द्वारा काटे गए सुपारी के पेड़ से बने खंभे पर फहराया जाता है। कोडियेट्टम की रस्म पूरम के दिन से सात दिन पहले की जाती है। कोडियेट्टम समारोह के बाद, पूरम से एक दिन पहले, आतिशबाजी समारोह होता है, जो पूरम के उत्साह और भावना को प्रेरित करता है। त्रिशूर पूरम एक बहुप्रतीक्षित मंदिर उत्सव है जो प्रति वर्ष आशा और उत्साह को जन्म देता है। वडक्कुमनाथन मंदिर के आसपास के लगभग दस मंदिर त्रिशूर पूरम उत्सव में भाग लेते हैं, जो अपने देवताओं के साथ पहुंचते हैं। ये मंदिर हैं तिरुवम्बाडी भगवती मंदिर, परमेक्कावु भगवती मंदिर, करमुक्कु भगवती मंदिर, नेथिलाक्कवु भगवती मंदिर, अय्यनथोल भगवती मंदिर, लालूर भगवती मंदिर, चूराक्कट्टुकावु भगवती मंदिर, चेम्बुक्कवु भगवती मंदिर, पनामुक्कुम्पल्ली , और कनिमंगलम संस्था।

वडक्कुमनाथन मंदिर | Elephant Thrissur Pooram

पूरम के दिन का आरंभ पूरविलंबरम से होता है, जब हाथी ‘नीथिलाक्कविलम्मा’ देवता की मूर्ति लेकर वडक्कुमनाथन मंदिर के दक्षिणी द्वार से जमीन पर आता है। इसके बाद आतिशबाजी का पहला दौर चलता है और बाद में, भाग लेने वाले प्रत्येक मंदिर का व्यक्तिगत पूरम होता है। आतिशबाजी का दूसरा दौर, शाम का मुख्य आकर्षण, कार्यक्रम के मुख्य समय में होता है। त्रिशूर पूरम का समापन अगले दिन दोपहर को आयोजित विदाई समारोह के साथ होता है। त्रिशूर पूरम सद्भाव और एकता की भावना का प्रचार करता है। देश के भीतर और बाहर से लोग इस पूरम की भव्यता को देखने के लिए उत्सव में शामिल होते हैं। भव्यता और उत्साह से परिपूर्ण, त्रिशूर पूरम वह उत्सव है जो परंपरा और विरासत के समृद्ध मिश्रण का प्रतिनिधित्व करता है।

Thrissur Pooram 2024 Highlights At a Glance

13 April — Kodiyettam वडक्कुमनाथन मंदिर

17 April — Sample Vedikettu,

18 April — Poora Vilambharam,

19 April — Minor Poorams,

19 April — “Madathil Varavu’ with Panchavadyam,

19 April — Paramekkavu Pooram,

19 April Divine Durbar Face to Face — ‘Kudamattam’,

20 April — Main Fireworks, आतिशबाजी का पहला दौर

20 April — Farewell 12:00 PM

20 April — Fire Works and End of Pooram, आतिशबाजी का दौर

समस्त भारत वर्ष के अन्य व्रत एवं त्योहारों की जानकारी प्राप्त करने के लिए subscribe करें भारत माता चैनल.

--

--

Bharat Mata - भारत माता
Bharat Mata - भारत माता

Written by Bharat Mata - भारत माता

भारतीय संस्कृति, इतिहास, धर्म का दर्पण - भारत माता | https://bharatmata.online/

No responses yet